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नवरात्रि के 9 दिन (नाम, पूजा, मंत्र और आरती)

कहते हैं कि एक मां चाहे भूखी रह लेगी, लेकिन अपने बच्चों को कभी तंग नहीं रखती। हम सबकी रक्षा करने वाली मां दुर्गा भी ऐसी ही हैं। मां अपने सच्चे भक्तों को कभी दु:ख में नहीं देख सकती। नवरात्रि के 9 दिन मां के अलग अलग रुपों की पूजा होती है। आज हमको इन 9 रुपों और उनकी आरतियां बताएंगे।

 

पहला दिन

पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित है। शैलपुत्री का मतलब है “हिमालय की पुत्री”। शैलपुत्री मां शक्ति का ही रुप हैं।


मां शैलपुत्री बीज मंत्र

ह्रीं शिवायै नम:


प्रार्थना मंत्र

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥


स्तुति मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥


शैलपुत्री मां की आरती


शैलपुत्री मां बैल असवार। करें देवता जय जयकार।

शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।

पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।

ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।

सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।

उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।

घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।

श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।

जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।

मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।


दूसरा दिन

दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित है। ब्रह्मचारिणी नाम ब्रह्मा से बना है जिसका मतलब होता है तपस्या। मां ब्रह्मचारिणी भी मां शक्ति का रूप हैं। इनके हाथ में जपमाला रहती है।

 

मां ब्रह्मचारिणी बीज मंत्र

ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:


प्रार्थना मंत्र

दधाना कर पद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू।

देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥


स्तुति मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥


मां ब्रह्मचारिणी की आरती


जय अंबे ब्रह्मचारिणी माता। जय चतुरानन प्रिय सुख दाता॥

ब्रह्मा जी के मन भाती हो। ज्ञान सभी को सिखलाती हो॥

ब्रह्म मंत्र है जाप तुम्हारा। जिसको जपे सरल संसारा॥

जय गायत्री वेद की माता। जो जन जिस दिन तुम्हें ध्याता॥

कमी कोई रहने ना पाए। उसकी विरति रहे ठिकाने॥

जो तेरी महिमा को जाने। रद्रक्षा की माला ले कर॥

जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर। आलस छोड़ करे गुणगाना॥

माँ तुम उसको सुख पहुचाना। ब्रह्मचारिणी तेरो नाम॥

पूर्ण करो सब मेरे काम। भक्त तेरे चरणों का पुजारी॥

रखना लाज मेरी माँ।

 

तीसरा दिन

तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा होती है। ये रूप साहस और सुंदरता का प्रतीक है। ये कष्टों को हरने वाली माता हैं।


मां चंद्रघंटा बीज मंत्र

ऐं श्रीं शक्तयै नम:


प्रार्थना मंत्र

पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।

प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥


स्तुति मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु मां चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥


मां चंद्रघंटा की आरती


जय माँ चन्द्रघंटा सुख धाम।

पूर्ण कीजो मेरे काम॥

चन्द्र समाज तू शीतल दाती।

चन्द्र तेज किरणों में समाती॥

क्रोध को शांत बनाने वाली।

मीठे बोल सिखाने वाली॥

मन की मालक मन भाती हो।

चंद्रघंटा तुम वर दाती हो॥

सुन्दर भाव को लाने वाली।

हर संकट में बचाने वाली॥

हर बुधवार को तुझे ध्याये।

श्रद्दा सहित तो विनय सुनाए॥

मूर्ति चन्द्र आकार बनाए।

शीश झुका कहे मन की बाता॥

पूर्ण आस करो जगत दाता।

कांचीपुर स्थान तुम्हारा॥

कर्नाटिका में मान तुम्हारा।

नाम तेरा रटू महारानी॥

भक्त की रक्षा करो भवानी।

 

चौथा दिन

नवरात्रि का चौथा दिन मां कूष्मांडा जी को समर्पित है। कुष्मांडा मां ही इस संसार को बनाने वाली हैं।


मां कूष्मांडा बीज मंत्र

ऐं ह्री देव्यै नम:


प्रार्थना मंत्र

सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥


स्तुति मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥


कूष्मांडा मां की आरती


कूष्मांडा जय जग सुखदानी।

मुझ पर दया करो महारानी॥

पिगंला ज्वालामुखी निराली।

शाकंबरी माँ भोली भाली॥

लाखों नाम निराले तेरे ।

भक्त कई मतवाले तेरे॥

भीमा पर्वत पर है डेरा।

स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥

सबकी सुनती हो जगदंबे।

सुख पहुँचती हो माँ अंबे॥

तेरे दर्शन का मैं प्यासा।

पूर्ण कर दो मेरी आशा॥

माँ के मन में ममता भारी।

क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥

तेरे दर पर किया है डेरा।

दूर करो माँ संकट मेरा॥

मेरे कारज पूरे कर दो।

मेरे तुम भंडारे भर दो॥

तेरा दास तुझे ही ध्याए।

भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥

 

पांचवां दिन

नवरात्रि का पांचवां दिन मां स्कंदमाता को समर्पित है। स्कंदमाता देवताओं की सेना के सेनापति स्कंद की माता हैं।


मां स्कंदमाता बीज मंत्र

ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:


प्रार्थना मंत्र

सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥


स्तुति मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥


मां स्कंदमाता की आरती


जय तेरी हो स्कंद माता।

पांचवां नाम तुम्हारा आता॥

सबके मन की जानन हारी।

जग जननी सबकी माँ॥

तेरी जोत जलाता रहू मैं।

हरदम तुझे ध्याता रहू मै॥

कई नामों से तुझे पुकारा।

मुझे एक है तेरा सहारा॥

कही पहाडो पर है डेरा।

कई शहरों में तेरा बसेरा॥

हर मंदिर में तेरे नजारे।

गुण गाए तेरे भक्त प्यारे॥

भक्ति अपनी मुझे दिला दो।

शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो॥

इंद्र आदि देवता मिल सारे।

करे पुकार तुम्हारे द्वारे॥

दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आए।

तू ही खंडा हाथ उठाए॥

दासों को सदा बचाने आयी।

भक्त की आस पुजाने आयी॥

 

छठा दिन

छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा होती है। मां कात्यायनी की तीन आंखें और चार हाथ हैं।


मां कात्यायनी बीज मंत्र

क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:


प्रार्थना मंत्र

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥


स्तुति मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥


मां कात्यायनी की आरती


जय जय अंबे जय कात्यायनी ।

जय जगमाता जग की महारानी ।।

बैजनाथ स्थान तुम्हारा ।

वहां वरदाती नाम पुकारा ।।

कई नाम हैं कई धाम हैं ।

यह स्थान भी तो सुखधाम है ।।

हर मंदिर में जोत तुम्हारी ।

कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी ।।

हर जगह उत्सव होते रहते ।

हर मंदिर में भक्त हैं कहते ।।

कात्यायनी रक्षक काया की ।

ग्रंथि काटे मोह माया की ।।

झूठे मोह से छुड़ानेवाली ।

अपना नाम जपानेवाली ।।

बृहस्पतिवार को पूजा करियो ।

ध्यान कात्यायनी का धरियो ।।

हर संकट को दूर करेगी ।

भंडारे भरपूर करेगी ।।

जो भी मां को भक्त पुकारे ।

कात्यायनी सब कष्ट निवारे ।।

 

सातवां दिन

नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा होती है। मां कालरात्रि की पूजा करने से आदमी को किसी का डर नहीं रहता और वो निडर हो जाता है।


मां कालरात्रि बीज मंत्र

क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।


प्रार्थना मंत्र

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।

लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥

वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।

वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥


स्तुति मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥


मां कालरात्रि की आरती


कालरात्रि जय-जय-महाकाली।

काल के मुह से बचाने वाली॥

दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा।

महाचंडी तेरा अवतार॥

पृथ्वी और आकाश पे सारा।

महाकाली है तेरा पसारा॥

खडग खप्पर रखने वाली।

दुष्टों का लहू चखने वाली॥

कलकत्ता स्थान तुम्हारा।

सब जगह देखूं तेरा नजारा॥

सभी देवता सब नर-नारी।

गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥

रक्तदंता और अन्नपूर्णा।

कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥

ना कोई चिंता रहे बीमारी।

ना कोई गम ना संकट भारी॥

उस पर कभी कष्ट ना आवें।

महाकाली माँ जिसे बचाबे॥

तू भी भक्त प्रेम से कह।

कालरात्रि माँ तेरी जय॥

 

आठवां दिन

नवरात्रि का आठवां दिन मां महागौरी जी को समर्पित है। मां महागौरी ज्ञान और संतोष प्रदान करती हैं।


मां महागौरी बीज मंत्र

श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:


प्रार्थना मंत्र

श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।

महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥


स्तुति मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु मां महागौरी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥


मां महागौरी जी की आरती


जय महागौरी जगत की माया।

जया उमा भवानी जय महामाया॥

हरिद्वार कनखल के पासा।

महागौरी तेरी वहां निवासा॥

चंद्रकली ओर ममता अंबे।

जय शक्ति जय जय माँ जगंदबे॥

भीमा देवी विमला माता।

कौशिकी देवी जग विख्यता॥

हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा।

महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा॥

सती {सत} हवन कुंड में था जलाया।

उसी धुएं ने रूप काली बनाया॥

बना धर्म सिंह जो सवारी में आया।

तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया॥

तभी माँ ने महागौरी नाम पाया।

शरण आनेवाले का संकट मिटाया॥

शनिवार को तेरी पूजा जो करता।

माँ बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता॥

भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो।

महागौरी माँ तेरी हरदम ही जय हो॥

 

नौवां दिन

नवरात्रि के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री जी की पूजा होती है। मां के इस रुप के पास सभी आठ सिद्धियां हैं।


मां सिद्धिदात्री बीज मंत्र

ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:


प्रार्थना मंत्र

सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।

सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥


स्तुति मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥


मां सिद्धिदात्री की आरती

जय सिद्धिदात्री मां तू सिद्धि की दाता ।

तू भक्तों की रक्षक तू दासों की माता ।।

तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि ।

तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि ।।

कठिन काम सिद्ध करती हो तुम ।

जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम ।।

तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है ।

तू जगदंबे दाती तू सर्व सिद्धि है ।।

रविवार को तेरा सुमिरन करे जो ।

तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो ।।

तू सब काज उसके करती है पूरे ।

कभी काम उसके रहे ना अधूरे ।।

तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया ।

रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया ।।

सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली ।

जो है तेरे दर का ही अंबे सवाली ।।

हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा ।

महा नंदा मंदिर में है वास तेरा ।।

मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता ।

भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता ।।